लोगों की राय

लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं

औरत का कोई देश नहीं

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :235
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7014
आईएसबीएन :978-81-8143-985

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

150 पाठक हैं

औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...

औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...


विद्यासागर विश्वविद्यालय की अंग्रेजी की प्रोफेसर इन्द्राणी दत्त चौधरी पर उनके विभागीय प्रधान की नज़र पड़ गयी। हम जानते हैं, जब किसी औरत पर, किसी पुरुष की नज़र पड़ जाती है तो क्या होता है? इन्द्राणी की तरफ़ सुबह-शाम सेक्सी जुमले उछालने लगे-तीर्थंकर दास पुरकायस्थ! वे यह करतूत निर्भय और निश्चिन्तता से करते रहे। किसी की क्या मजाल कि उन्हें चुप करा दे। इन्द्राणी की तरफ़ भले वे कितने भी इशारे या फब्लियाँ कसते रहे, लेकिन नाकाम रहे। जितना नाकाम होते गये, उतना ही बाघ होते गये। अन्दर-बाहर गुर्राते रहे, दहाड़ते रहे। सब कुछ जान-समझकर भी लोग अन्त में, इन्द्राणी के सिर इल्ज़ाम मढ़ते रहे। चूँकि औरतों पर आरोप लगाना बेहद आसान होता है और यह संस्कृति काफ़ी लोकप्रिय भी है, लोग-बाग जैसे बलात्कारी को दोष न दे कर, बलात्कार की शिकार औरत को ही दोष देते हैं और कहते हैं कि उस औरत की पोशाक या दृष्टि या चाल-चलन ने ही उसे बलात्कार के लिए उकसाया होगा यह मामला भी बिलकुल वैसा ही था। इन्द्राणी ने विश्वविद्यालय के उपाध्यक्ष से, तीर्थंकर के आचरण की शिकायत की। लेकिन कोई फायदा नहीं हआ। उपाध्यक्ष खद भी परुष थे। कोई मसीबत नज़र आये तो मर्द हमेशा मर्द का ही पक्ष लेते हैं क्योंकि मर्द, मर्द का चरित्र पहचानते हैं। जैसे रतन ही रतन को पहचानता है। एक रतन अगर मुसीबत में पड़ जाये और दूसरा रतन उसका बचाव न करे, तो उस रतन को मुसीबत से बचाने के लिए, पहला रतन आगे नहीं आयेगा। इन मर्दो में एक अलिखित समझौता होता है कि ये लोग एक-दूसरे की ज़रूरत में आगे आयेंगे और आगे आते भी हैं, तभी तो यह दुनिया 'रतनों से भर उठी है। रतनों की इस क़दर भीड़ लगी है कि औरतों का राह चलना मुश्किल हो गया है। चलते हुए क़दम-कदम पर ठोकर लगती है, फिसल जाने जैसा हादसा होता रहता है।

चूँकि इन्द्राणी ने तीर्थंकर का प्रस्ताव क़बूल नहीं किया, सिर्फ इतना ही नहीं, उन्होंने अकेले में क्या-क्या कहा और किया, वे सब ख़बरें भी फैला दी इसलिए तीर्थंकर आगबबूला हो उठे थे। उन्होंने यह अफवाह फैलाने की कोशिश की कि इन्द्राणी का ही उनके प्रति दुर्दम्य आकर्षण था। इन्द्राणी ही उनसे जुड़ने को पगला गयी थीं। लेकिन इन्द्राणी भी इन अफवाहों से हार माननेवाली नहीं थीं। उन्होंने भी प्रतिज्ञा की कि वे यह बेइज्जती क़बूल नहीं करेंगी। तीर्थंकर और उनके पिळुओं को उम्मीद थी कि इन्द्राणी के चरित्र पर जी भरकर कालिख पोतने के बाद वे विश्वविद्यालय छोड़ने को लाचार हो जायेंगी। इस तरह मुसीबत विदा हो जायेगी। बहरहाल, उन लोगों की उम्मीद, बस उम्मीद ही रह गयी। इन्द्राणी विश्वविद्यालय बदलने को तैयार नहीं थीं। विश्वविद्यालय वे इसलिए नहीं बदलेंगी, क्योंकि उन्होंने कोई गुनाह नहीं किया। गुनाह तो तीर्थंकर ने किया था। सिर झुकाकर, अगर किसी को विश्वविद्यालय से विदा लेना पड़ा, तो वे तीर्थंकर होंगे। इन्द्राणी क्यों? अब, अगर वे पीछे हट जाती हैं, तो लोगों को लगेगा कि झूठी अफवाह ही सच थी। चैन जैसी चीज़ जो जीने के लिए बेहद ज़रूरी है, उन्हें नसीब नहीं होगी, वैसे भी क़दम पीछे हटाने की, इन्द्राणी के पास कोई वजह नहीं है, क्योंकि उन्हें बखूबी अहसास था कि उन्होंने कोई गलती नहीं की। इसलिए इन्द्राणी शान से सिर उठाये खड़ी हैं और गुनहगार को सज़ा देने की माँग कर रही हैं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. इतनी-सी बात मेरी !
  2. पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
  3. बंगाली पुरुष
  4. नारी शरीर
  5. सुन्दरी
  6. मैं कान लगाये रहती हूँ
  7. मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
  8. बंगाली नारी : कल और आज
  9. मेरे प्रेमी
  10. अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
  11. असभ्यता
  12. मंगल कामना
  13. लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
  14. महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
  15. असम्भव तेज और दृढ़ता
  16. औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
  17. एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
  18. दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
  19. आख़िरकार हार जाना पड़ा
  20. औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
  21. सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
  22. लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
  23. तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
  24. औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
  25. औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
  26. पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
  27. समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
  28. मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
  29. सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
  30. ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
  31. रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
  32. औरत = शरीर
  33. भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
  34. कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
  35. जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
  36. औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
  37. औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
  38. दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
  39. वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
  40. काश, इसके पीछे राजनीति न होती
  41. आत्मघाती नारी
  42. पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
  43. इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
  44. नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
  45. लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
  46. शांखा-सिन्दूर कथा
  47. धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book